
भारत की शिक्षा प्रणाली, जो दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे जटिल प्रणालियों में से एक है, ने पिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के लागू होने और डिजिटल शिक्षा के बढ़ते उपयोग के साथ, देश में शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तनकारी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। फिर भी, कई गंभीर चुनौतियाँ बनी हुई हैं जो भारत में गुणवत्तापूर्ण और समावेशी शिक्षा प्रदान करने के प्रयासों को बाधित करती हैं। इनमें अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, शिक्षक की गुणवत्ता, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच, ड्रॉपआउट दरें, रटने पर आधारित शिक्षा प्रणाली, और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ शामिल हैं। यह लेख इन चुनौतियों का गहन विश्लेषण करता है और उनके संभावित समाधानों पर प्रकाश डालता है।
1. अपर्याप्त बुनियादी ढांचा
भारत में शिक्षा प्रणाली की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक अपर्याप्त बुनियादी ढांचा है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में कई स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं जैसे कक्षाओं, शौचालयों, पीने के पानी, और बिजली की कमी है। उदाहरण के लिए, शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश के कई सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं, जो विशेष रूप से किशोरियों की उपस्थिति और ड्रॉपआउट दरों को प्रभावित करता है।
इसके अलावा, डिजिटल शिक्षा के युग में, ग्रामीण स्कूलों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और कंप्यूटर लैब की कमी एक बड़ी बाधा है। कोविड-19 महामारी ने इस समस्या को और उजागर किया, जब ऑनलाइन शिक्षा के लिए संसाधनों की कमी के कारण लाखों छात्र शिक्षा से वंचित रह गए। स्मार्ट क्लासरूम, लाइब्रेरी, और विज्ञान प्रयोगशालाओं जैसी आधुनिक सुविधाएँ केवल शहरी और निजी स्कूलों तक ही सीमित हैं, जिससे शैक्षिक असमानता और बढ़ती है।
2. शिक्षक की गुणवत्ता और प्रशिक्षण
शिक्षक किसी भी शिक्षा प्रणाली की रीढ़ होते हैं, लेकिन भारत में शिक्षकों की गुणवत्ता और प्रशिक्षण एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। कई शिक्षक, विशेष रूप से सरकारी स्कूलों में, पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं या आधुनिक शिक्षण विधियों से अपरिचित हैं। रटने पर आधारित शिक्षण पद्धति अभी भी प्रचलित है, जो छात्रों की आलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता को सीमित करती है।
इसके अलावा, शिक्षकों की कमी भी एक गंभीर समस्या है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षक-छात्र अनुपात को बेहतर करने की सिफारिश की गई है, लेकिन कई स्कूलों में एक शिक्षक को 50-60 छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाती है, जो व्यक्तिगत ध्यान देने में बाधा डालता है। शिक्षकों के लिए निरंतर पेशेवर विकास (Continuous Professional Development) कार्यक्रमों की कमी भी उनकी शिक्षण क्षमता को प्रभावित करती है।
3. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच भारत में एक असमान अवसर है। शहरी क्षेत्रों और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को बेहतर संसाधन, शिक्षक, और अवसर मिलते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र अक्सर उपेक्षित रह जाते हैं। सामाजिक-आर्थिक स्थिति, लिंग, और जाति जैसे कारक शिक्षा तक पहुँच को और जटिल बनाते हैं।
उदाहरण के लिए, लड़कियों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, को स्कूल जाने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि सुरक्षा, दूरी, और सामाजिक रूढ़ियाँ। इसी तरह, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चों को अक्सर शिक्षा के अवसरों से वंचित रखा जाता है।
4. ड्रॉपआउट दरें
भारत में स्कूल ड्रॉपआउट दरें, विशेष रूप से माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर, चिंताजनक हैं। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE) के आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर लगभग 13% थी। ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर और भी अधिक है।
ड्रॉपआउट के प्रमुख कारणों में आर्थिक तंगी, बाल विवाह, बाल श्रम, और शिक्षा की प्रासंगिकता की कमी शामिल हैं। कई परिवारों के लिए, बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय उन्हें काम पर भेजना अधिक व्यवहारिक लगता है। इसके अलावा, स्कूलों में प्रासंगिक और आकर्षक पाठ्यक्रम की कमी भी छात्रों को शिक्षा से दूर करती है।
5. रटने पर आधारित शिक्षा
भारत की शिक्षा प्रणाली पर लंबे समय से रटने पर आधारित शिक्षण की आलोचना होती रही है। छात्रों को तथ्यों और सूचनाओं को याद करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, न कि उनकी आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान कौशल, या रचनात्मकता को विकसित करने के लिए। यह दृष्टिकोण 21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था में आवश्यक कौशलों, जैसे कि नवाचार और विश्लेषणात्मक सोच, के विकास में बाधा डालता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इस समस्या को संबोधित करने के लिए अनुभवात्मक और कौशल-आधारित शिक्षा पर जोर दिया गया है। फिर भी, इस नीति को लागू करने में कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कि शिक्षकों का प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम का नवीनीकरण, और मूल्यांकन प्रणाली में बदलाव।
6. सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ
सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ भारत में शिक्षा की सबसे बड़ी बाधा हैं। गरीबी, जाति, और लिंग-आधारित भेदभाव शिक्षा तक पहुँच और गुणवत्ता को गहराई से प्रभावित करते हैं। धनी परिवारों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं, जहाँ उन्हें बेहतर सुविधाएँ और शिक्षक मिलते हैं, जबकि गरीब परिवारों के बच्चे अक्सर संसाधन-हीन सरकारी स्कूलों पर निर्भर रहते हैं।
इसके अलावा, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच डिजिटल डिवाइड ने शिक्षा में असमानता को और बढ़ा दिया है। कोविड-19 महामारी के दौरान, जिन छात्रों के पास स्मार्टफोन या इंटरनेट की सुविधा नहीं थी, वे ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित रह गए। यह डिजिटल असमानता भविष्य में शैक्षिक और आर्थिक अवसरों में और अधिक अंतर पैदा कर सकती है।
समाधान के लिए सुझाव
इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कुछ संभावित समाधान निम्नलिखित हैं: