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ग्लोबल वॉर्मिंग: भारत पर इसका प्रभाव और भविष्य

ग्लोबल वॉर्मिंग क्या है?

ग्लोबल वॉर्मिंग एक ऐसी स्थिति है जिसमें पृथ्वी का वैश्विक तापमान (औसत सतह तापमान) मानव गतिविधियों के कारण बढ़ रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण है ग्रीनहाउस गैसें (GHGs) जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄), और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) का बढ़ता उत्सर्जन। ये गैसें सूर्य की किरणों से आने वाली गर्मी को पृथ्वी के वातावरण में रोक लेती हैं, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा होता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो पृथ्वी को जीवन के लिए उपयुक्त रखती है, लेकिन जब इन गैसों का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है, तो यह ग्लोबल वॉर्मिंग का रूप ले लेती है।

मानव गतिविधियाँ जैसे जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल, और गैस) का जलाना, वनों की कटाई, और औद्योगिक प्रक्रियाएँ इन गैसों के उत्सर्जन को बढ़ावा देती हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार, 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था, जिसमें वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर (1850-1900) से 1.55 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

भारत पर ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव

भारत, जो विश्व की 17.7% जनसंख्या का घर है, ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों के लिए अत्यंत संवेदनशील देश है। इसके प्रभाव देश के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, स्वास्थ्य, जल संसाधन, और अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे हैं। आइए इसके कुछ मुख्य प्रभावों पर विचार करें:

1. तापमान में वृद्धि और लू (हीटवेव्स)

भारत में तापमान 1901 से 2018 तक लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है, जो वैश्विक औसत से कम है। लेकिन इसके बावजूद, देश में गर्मी के दिन और लू की संख्या व तीव्रता में वृद्धि हुई है। 2018 भारत का छठा सबसे गर्म वर्ष था, और 2004 के बाद से 15 में से 11 सबसे गर्म वर्ष देखे गए हैं।

2. मानसून में परिवर्तन

भारत की मानसून प्रणाली ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बदल रही है। 1951 से 2015 तक मानसून वर्षा में लगभग 6% की कमी आई है, विशेषकर इंडो-गंगा मैदानों और पश्चिमी घाटों में।

3. समुद्र स्तर की वृद्धि

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र का तापमान और जलस्तर बढ़ रहा है। 1951-2015 के दौरान, उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर का समुद्री तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ा, जो वैश्विक औसत (0.55 डिग्री सेल्सियस) से अधिक है।

4. कृषि और खाद्य सुरक्षा

भारत में कृषि मानसून और तापमान पर निर्भर है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बढ़ता तापमान और अनियमित वर्षा कृषि उत्पादन को प्रभावित कर रही है।

5. स्वास्थ्य पर प्रभाव

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण स्वास्थ्य समस्याएँ भी बढ़ रही हैं। लू के अलावा, गर्मी और आर्द्रता से मलेरिया, डेंगू, और चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ बढ़ रही हैं।

क्या ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ही इतनी गर्मी पड़ रही है?

हाँ, ग्लोबल वॉर्मिंग का इतनी गर्मी पड़ने में बड़ा योगदान है। वैश्विक तापमान के बढ़ने के कारण भारत में लू की स्थिति में वृद्धि और तीव्रता देखी जा रही है। 2022 में भारत और पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ने वाली लू देखी गई, जिसमें तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया। यह स्थिति ग्लोबल वॉर्मिंग के बिना इतनी तीव्र न होती। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन ने तापमान को बढ़ाया है, जिससे गर्मी के दिन लंबे और अधिक तीव्र हो रहे हैं। हालांकि, यह भी सच है कि प्राकृतिक परिवर्तनशीलता (natural variability) जैसे एल निनो) कुछ हद तक गर्मी को प्रभावित करती है।

भारत में अगले वर्षों में तापमान कितना बढ़ सकता है?

भारत में तापमान वृद्धि का अनुमान विभिन्न जलवायु मॉडलों और उत्सर्जन के परिदृश्यों (scenarios) पर निर्भर करता है। अंतरराष्ट्रीय पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के अनुसार, यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी नहीं आई, तो निम्न प्रभाव हो सकते हैं:

समाधान और भविष्य की दिशा

ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के लिए भारत को स्थानीय और वैश्विक स्तर पर प्रयास करने होंगे। कुछ महत्वपूर्ण कदम निम्नलिखित हैं:

निष्कर्ष

ग्लोबल वॉर्मिंग भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है, जो देश की अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, और समाज को प्रभावित कर रही है। बढ़ता तापमान, अनियमित मानसून, समुद्र स्तर की वृद्धि, और स्वास्थ्य संकट इसके प्रमुख प्रभाव हैं। यदि समय रहते उत्सर्जन को कम करने और जलवायु अनुकूलन के उपाय नहीं किए गए, तो भारत को और गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति और सरकार को मिलकर इस समस्या से निपटने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। एक टिकाऊ और हरा-भरा भविष्य हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

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